परमाणु के नाभिक के स्वतः
विखंडन के कारण हानिकारक विकिरण या कणों के बाहर निकलने को रेडियोधर्मिता कहते
हैं।
·
रेडियोधर्मिता की खोज हेनरी बैक्क्वेरेल,
मैडम क्यूरी और पियरे क्यूरी ने
संयुक्त रूप से की थी जिसके लिए इन्होने संयुक्त रूप से नोबल पुरस्कार जीता था।
·
वह नाभिक अस्थिर होते हैं, जिनमें 83 या अधिक प्रोटॉन होते हैं। वे a, b और g कण उत्सर्जित करके स्थिर हो जाते हैं। इस प्रकार के तत्वों के नाभिकों
को रेडियोधर्मी तत्व कहा जाता है तथा a, b और g कणों के उत्सर्जन की प्रक्रिया को रेडियोधर्मिता कहा
जाता है।
·
g किरणें a और b किरणों के उत्सर्जन के पश्चात उत्सर्जित हो जाती हैं।
·
रॉबर्ट पियरे और उनकी पत्नी मैडम क्यूरी ने एक नए रेडियोधर्मी तत्व रेडियम
की खोज की थी।
·
रेडियोधर्मिता द्वारा उत्सर्जित किरणों को सबसे पहले रदरफोर्ड ने पहचाना
था।
·
रेडियोधर्मी किरणों के उत्सर्जन के पश्चात सभी प्राकृतिक रेडियोधर्मी
तत्वों के अंत उत्पाद लेड (सीसा) होता है।
स्थिर और अस्थिर नाभिकों के बीच अंतर
क्रमांक
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स्थिर नाभिक
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अस्थिर नाभिक
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1.
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निम्न परमाणु संख्या
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उच्च परमाणु संख्या
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2.
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निम्न द्रव्यमान संख्या
|
उच्च द्रव्यमान संख्या
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3.
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छोटे आकार का नाभिक
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बड़े आकार का नाभिक
|
4.
|
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a, b और g कणों के गुण
क्रमांक
|
गुण
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a
|
b
|
g
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1.
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उत्पत्ति
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नाभिक
|
नाभिक
|
नाभिक
|
2.
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प्रकृति
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धनावेशित
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ऋणावेशित
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उदासीन
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3.
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संरचना
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He4
|
|
फोटोन
|
4.
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द्रव्यमान
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6.4 x 10-31 kg
|
9.1 x 10-31 kg
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शून्य
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5.
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आवेश
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+2e
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-e
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शून्य
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6.
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रासायनिक प्रभाव
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फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करतीं हैं
|
फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करतीं हैं
|
फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करतीं हैं
|
7.
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बिजली और चुंबकीय क्षेत्र के
प्रभाव
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मुड़ जाती हैं
|
मुड़ जाती हैं
|
प्रभावित नहीं होतीं
|
8.
|
भेदन शक्ति
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निम्नतम
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निम्नतम अधिकतम दोनों के बीच में
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अधिकतम
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9.
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आयनीकरण क्षमता
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अधिकतम
|
निम्नतम अधिकतम दोनों के बीच में
|
निम्नतम
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10.
|
वेग
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1.4 x 107 मी/से से
2.2 x 107 मी/से के बीच में
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प्रकाश के वेग का 1% से
99%
|
3 x 108 मी/से
|
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a-कण के उत्सर्जन के साथ, परमाणु संख्या 2 कम हो जाती है तथा द्रव्यमान
संख्या 4 कम हो जाती है।
·
b- कण के उत्सर्जन के साथ, परमाणु संख्या एक बढ़ जाती है तथा द्रव्यमान संख्या में कोई परिवर्तन नही होता है।
·
a, b और
g कणों के उत्सर्जन के साथ, द्रव्यमान संख्या और परमाणु
संख्या पर पड़ने वाला प्रभाव समूह-विस्थापन नियम या सोडी-फजान नियम द्वारा
निर्धारित किया जाता है।
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रेडियोधर्मिता का पता गीगर-मुलर काउंटर से चलता है।
·
वह समय जिसमें किसी तत्व का नाभिक आधा क्षय हो जाता है, उसे रेडियोधर्मी पदार्थ का
अर्धायु काल कहा जाता है।
·
क्लाउड चैंबर: क्लाउड चैम्बर का उपयोग रेडियोधर्मी कणों की उपस्थिति और
गतिज ऊर्जा का पता लगाने के लिए किया जाता है। इसकी खोज सी. आर. टी. विल्सन द्वारा
की गई थी।
रेडियोधर्मी
कार्बन-14 का
प्रयोग पुरातत्व-जीव विज्ञान में जंतुओं एवं पौधों के प्राप्त अवशेषों के जीवन काल, समय
चक्र का निर्धारण करने में किया जाता है। इसमें कार्बन-12 एवं
कार्बन-14 के
मध्य अनुपात निकाला जाता है।
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